गढ़वाल विश्वविद्यालय के बिड़ला परिसर में संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित निशुल्क संस्कृत संभाषण कार्यशाला का शुभारंभ, प्राध्यापकों के सहयोग से शिक्षक कुलदीप मैन्दोला करा रहे हैं संस्कृत में बातचीत

।। संस्कृत भाषा, अपने वैज्ञानिक व्याकरण और संवाद कौशल की विशेषताओं के कारण, आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बनी हुई है। कार्यशालाएं और इस प्रकार के प्रयास इस बात को सिद्ध करते हैं कि संस्कृत केवल एक प्राचीन भाषा नहीं, बल्कि एक संवादमाध्यम, विचारों की संरचना, और ज्ञान की वैज्ञानिक भाषा भी है ।।

 

गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (बिड़ला परिसर) के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित निशुल्क संस्कृत संभाषण कार्यशाला का शुभारंभ संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. कमला चौहान के निर्देशन में किया गया । इस अवसर पर डॉ. आशुतोष गुप्ता, डॉ. बालकृष्ण बधानी, डॉ. विश्वेषवाग्मी, डॉ. प्रीति, डॉ. सविता भंडारी, डॉ. कपिलदेव पंवार, पंकज मैन्दोली और कमल टिमोली ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।

 

निशुल्क सरल संस्कृत संभाषण कार्यशाला में संभाषण शिक्षक कुलदीप मैन्दोला ने विभिन्न विषयों के प्राध्यापक व छात्राओं से संस्कृत में बातचीत की, उन्होंने सरलता के साथ सबको संस्कृत के व्यावहारिक परिचित शब्दों को संस्कृत में बोलते हुए अभ्यास कराया । इससे पहले भी मैन्दोला आईआईटी रुड़की में छ महीने तक 26 देशों के पंजीकृत 5000 संस्कृत जिज्ञासुओं को संस्कृत शिक्षण और आयुर्वैदिक कॉलेज में संस्कृणशिक्षण करवा चुके हैं, संस्कृत भारती के सम्भाषण में 2002 से अभी तक देश तथा प्रदेश में निरन्तर आफलाइन व आनलाइन सम्भाषण का कार्य निरंतर करते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरे मार्गदर्शक रहे डा.आशुतोषगुप्त सर का और डा.बालकृष्ण बधानी तथा समस्त संस्कृत विभाग तथा समस्त बिड़ला परिसर का मैं आभारी हूं कि उनके सौजन्य में हमें संस्कृतगंगा को सम्भाषण के रूप में प्रवाहित करने का अवसर मिला, उन्होंने

कहा कि मुझे अपने अति-विशेषतया मुख्यशिक्षाधिकारी नागेन्द्रबर्त्वाल जी का अपने प्रधानाचार्य मोहन सिंह रावत जी धन्यवाद देते हुए कहा कि उनका विश्वास पूर्ण समर्थन, छात्र हित और समाज हित में सदैव मिलता रहता है जिससे मुझे संस्कृत सेवाओं के लिए ऐंसा अवसर प्राप्त हो पाता है।

 

निशुल्क सरल संस्कृत कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर

सभी मार्गदर्शकों ने संस्कृत भाषा की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसके व्यावहारिक उपयोग और भाषा कौशल के विकास के लिए प्रेरित किया। यह कार्यशाला संस्कृत भाषा को बोलचाल में सरल और सहज बनाने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही है, जिससे छात्र और अन्य इच्छुक व्यक्ति इस प्राचीन भाषा को अधिक गहराई से समझ सकें और आत्मसात कर सकें।

 

संस्कृत भाषा के सन्दर्भ में विद्वानों ने कार्यशाला में अपने विशेष वक्तव्य में निम्न सन्दर्भो पर अपना मन्तव्य रखा –

 

 

संस्कृत भाषा: वैज्ञानिक व्याकरण और संवाद की महत्ता

 

संस्कृत, भारत की प्राचीन और समृद्ध भाषा, न केवल धार्मिक और साहित्यिक परंपरा का आधार है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के बिड़ला परिसर में आयोजित निशुल्क संस्कृत संभाषण कार्यशाला में प्रथम दिवस पर शिक्षकों और छात्रों ने विभिन्न अंग्रेजी, विज्ञान, राजनीति विज्ञान, और सामाजिक विज्ञान के छात्रों नें संस्कृत भाषा का उपयोग करते हुए संवाद किया। यह अनुभव सभी के लिए रुचिकर और प्रेरणादायक रहा।

 

संस्कृत संवाद का महत्व

 

संस्कृत को अक्सर एक कठिन और केवल शास्त्रीय अध्ययन के लिए सीमित भाषा के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह धारणा इस प्रकार की कार्यशालाओं से बदल रही है। जब अंग्रेजी और विज्ञान जैसे आधुनिक विषयों पर संस्कृत में चर्चा की गई, तो यह सिद्ध हुआ कि यह भाषा न केवल प्राचीन चिंतन और दर्शन को व्यक्त करने में सक्षम है, बल्कि आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भाषा भी बन सकती है।

 

संस्कृत में संवाद करना, छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए एक नई दृष्टि खोलने जैसा था। सरलता और स्पष्टता के साथ विचार व्यक्त करने में इस भाषा की दक्षता को देखकर सभी ने इसे संवाद की भाषा के रूप में अपनाने में रुचि दिखाई। यह दिखाता है कि संस्कृत न केवल एक साहित्यिक भाषा है, बल्कि संवाद की भी प्रभावी भाषा बन सकती है।

 

संस्कृत व्याकरण की वैज्ञानिकता

 

संस्कृत भाषा का व्याकरण इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसका आधार पाणिनि का अष्टाध्यायी है, जो विश्व का पहला और सबसे वैज्ञानिक व्याकरण ग्रंथ माना जाता है। संस्कृत व्याकरण में धातुओं और प्रत्ययों का क्रमबद्ध उपयोग भाषा को अत्यंत संरचित और व्यवस्थित बनाता है। इसके नियम इतने वैज्ञानिक और तार्किक हैं कि अन्य भाषाओं के शब्दों को भी इसके माध्यम से समझा जा सकता है।

 

संस्कृत की वैज्ञानिकता का एक उदाहरण यह है कि यह भाषा उच्चारण और अर्थ की शुद्धता के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक ध्वनि और अक्षर का स्पष्ट और विशिष्ट अर्थ होता है, जो इसे गणितीय संरचना के समान बनाता है। यही कारण है कि संस्कृत का उपयोग कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी संभावित रूप से उपयोगी माना जाता है।

 

आधुनिक शिक्षा और संस्कृत

 

संस्कृत भाषा का महत्व केवल इसके व्याकरण और संरचना तक सीमित नहीं है। यह भाषा विचारों की स्पष्टता, तर्कशक्ति और सांस्कृतिक मूल्यों का भी वाहक है। जब छात्रों ने इस भाषा में संवाद किया, तो उन्होंने पाया कि यह उनकी तार्किक क्षमता को बढ़ाती है और उन्हें अपनी अभिव्यक्ति में अधिक स्पष्टता प्रदान करती है।

 

संस्कृत के माध्यम से विज्ञान और समाजशास्त्र जैसे विषयों पर चर्चा ने यह दिखाया कि भाषा की सीमा केवल पारंपरिक अध्ययन तक नहीं है। यह नए युग की शिक्षा प्रणाली में भी सहायक हो सकती है। संस्कृत में आधुनिक विषयों पर संवाद करना केवल एक भाषाई प्रयोग नहीं था, बल्कि यह सिद्ध करता है कि संस्कृत का भविष्य में भी महत्व रहेगा।

 

संस्कृत नवसंरचना , और ज्ञान की वैज्ञानिक भाषा भी है।

 

संस्कृत भाषा, अपने वैज्ञानिक व्याकरण और संवाद कौशल की विशेषताओं के कारण, आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बनी हुई है। कार्यशालाएं और इस प्रकार के प्रयास इस बात को सिद्ध करते हैं कि संस्कृत केवल एक प्राचीन भाषा नहीं, बल्कि एक संवादमाध्यम, विचारों की संरचना, और ज्ञान की वैज्ञानिक भाषा भी है।

 

शिक्षा जगत में संस्कृत को पुनर्जीवित करने और इसे संवाद की भाषा बनाने के प्रयास न केवल इसकी महत्ता को पुनर्स्थापित करते हैं, बल्कि यह आधुनिक भारत की भाषाई और सांस्कृतिक धरोहर को भी सुदृढ़ करते हैं।

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